ऊँची इमारतें
हर ओर बन रही अब ऊँची इमारतें,
तरक्की की नहीं, विनाश की इबारतें ।
ना धूप मिलती इनमें, न मिलती है हवा,
जीवन न चले रहने वालों का बिना दवा,
रहती है क्षय,दमा की इनमें हरारतें,
हर ओर बन रही हैं ऊँची इमारतें ।
लगती है आग इनमें बिजली के शार्ट से,
दम घुटने से जन हानि होती है आग से,
मिल पाती न मदद रह जाते पुकारते,
हर ओर बन रही हैं ऊँची इमारतें ।
आतंकवादी इनमें ही मारते टक्कर,
षड्यंत्र का चलता है इनमें ही चक्कर,
दुश्मन हमेशा इनमें करता शरारतें,
हर ओर बन रही है ऊँची इमारतें ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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