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      || बच्चो को बतला सकते हैं ||

      बच्चो को बतला सकते हैं

      बच्चों को बतला सकते हैं,कैसी होती है गुड़िया,
      आने वाले दिन में शायद ही बतला पायें चिड़िया ।

      पुरखों में खाना देने को कौवे मिले ना ढूंढे से,
      वृक्ष नहीं, घोंसला बनायें, बिजली खम्बे ठूंठे से,
      कुछ दिन बाद भूल जायेंगे हवा के झोंके थे बढ़िया,
      बच्चो को बतला सकते हैं, कैसी होती है गुड़िया ।

      चूल्हों पर रोटी बनती थी सोंधी-सोंधी और ताजी,
      आज हमें सहनी पड़ती है गैस व्यथा की नाराजी,
      धीरे-धीरे भूल गये सब दाल पकाने की हंडिया,
      बच्चों को बतला सकते हैं, कैसी होती है गुड़िया ।

      कागज पर सब लिखते थे स्याही के फाउन्टेनपेन से,
      हुई लिखाई गड़बड़ दिनदिन नये पेनों की देन से,
      भला कहाँ अब जान पायेंगे लिखने वाली थी खड़िया,
      बच्चो को बतला सकते हैं, कैसी होती है गुड़िया ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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