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      || शादी नहीं करना ||

      बेटी न हो बालिग तो शादी नहीं करना,
      गल्ती करोगे तुम पड़ेगा बेटी को भरना ।

      बालिग से पहले बेटी होती है फूल के जैसी,
      छोटी उमर की शादी है बबूल के जैसी ।

      सीखने दो बेटी को तुम बनना सँवरना,
      बेटी न हो बालिग तो शादी नहीं करना ।

      कोमल है डाल अभी नहीं बोझ डालिये,
      खेलने की उम्र सेहत उसकी संभालिये ।

      बाली उम्र का ब्याह,पर चिड़िया का कतराना,
      बेटी न हो बालिग तो शादी नहीं करना ।

      पढा लिखा के पैर पर खड़ा कर दीजिये,
      दहेज नहीं शिक्षा का दान उसे दीजिये ।

      पहले उसे सिखाईये कठिनाई से लड़ना,
      बेटी न हो बालिग तो शादी नहीं करना ।

      कच्ची उमर में यदि वो बन जायेगी माँ,
      बच्चा व माँ दोनों की सेहत बचे कहाँ ।

      ऐसा न हो दिनों को,पड़ जाये मरना,
      बेटी न हो बालिग तो शादी नहीं करना ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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