प्राणदायिनी पवन
हरी-हरी सी वादियों का महका-महका सा चमन,
घनी-घनी घटाओं से घिरा-घिरा सा ये गगन ।
हैं तभी तक समझो जब तब रहेंगे हरे-भरे,
ये वृक्ष,फूल,पत्तियाँ, लता,उपवन और वन ।
लगाते रहें वृक्ष लगातार यदि हम और तुम,
झरर-झरर बहेगा जल हवा चले सनन-सनन ।
और यदि हम इस तरफ से कर गये अनदेखी,
बन जायेगी बंजर जमीन बढ़ेगी उमस,तपन ।
फल-फूल इनसे मिलते,मिलती कई दवाईयाँ,
प्राण सबमें डालती है प्राणदायिनी पवन ।
सड़क व पगडंडी के दोनों ओर यदि वृक्ष हों,
नौतपों की धूप भी सह जायेगा पथिक चुभन ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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