छोटा इसे न समझो
छोटा इसे न समझो ये है शुद्ध ताजगी की टकसाल,
दूब जिसे हम कहते वो है कई गुणों से मालामाल।
हरी दूब पर खेलें बच्चे चोट लगे इसका ना डर,
हो प्रभात से सांझ भले जाना न चाहें बच्चे घर,
दूब लगे बच्चों को अच्छी नाचें, कूदें, करें धमाल,
छोटा इसे न समझो ये है शुद्ध ताजगी की टकसाल।
प्रेमाश्रय प्रेमी जोड़ों को सस्ता सुंदर व रमणीय,
तिनका दूब चबाती रमणी लगती प्रेमी को कमनीय,
प्रेमालाप के लिये सुखद आसन दे देती दूब तत्काल,
छोटा इसे न समझो ये है शुद्ध ताजगी की टकसाल।
दूब में चलने से बूढ़े व रोगी हो जाते निरोग,
पैर के तलवों से घुस शक्ति सर पर पहुंच भगाये रोग,
रक्षा करती बन संजीवन कभी कभी बन जाये ढाल,
छोटा इसे न समझो ये है शुद्ध ताजगी की टकसाल।
दूब बिना पूरे ना होते पूजा अर्चन व उपवास,
दूब चढ़े देवों के मस्तक दूब में है देवों का वास,
अनंत भूमि पर दूब बिछाये बैठी आसन प्रकृति विशाल,
छोटा इसे न समझो ये है शुद्ध ताजगी की टकसाल।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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