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      || खत जवाबी ||

      ससुराल से बेटी का आया है खत जवाबी,
      जल्दी से खोलूँ पढूं कुछ ना हुई हो खराबी ।

      वैसे तो कोई चीज न थी जो ना मैंने दी थी,
      उपहार तक में आया जो इक पाई भी न ली थी,

      फिर भी जी धक-धक करे है बढ़ रही बेताबी,
      बेटी का ससुराल से आया है खत जवाबी ।

      बारात की सेवा में कोई कमी कहाँ थी,
      रस्ते के खाने में भी तो चार सब्जियाँ थी,

      नमकीन की मीठे की कमी न थी जरा भी,
      बेटी का ससुराल से आया है खत जवाबी ।

      कार की चाबी भी दी थी उनको द्वारचार में,
      चेन भी दी थी भारी सी दूधभात उपहार में,

      दहेज उन्मूलन नियम सब बाते हैं किताबी,
      बेटी का ससुराल से आया है खत जवाबी ।

      दिखता था वैसे खुश तो हर एक बाराती,
      दिल जान से जुटे थे सेवा में सब घराती,

      लाख लाख शुक्र यूँ ही लिखा है खत जवाबी,
      माँ बाप के सुख चैन की खुशहाल बेटी चाबी ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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