भूल न जाना दुनिया वालो
भूल न जाना दुनियां वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को,
नारी के सम्मान हित उसने जो दी कुर्बानी को ।
असमय राजा स्वर्ग सिधारे हुई राजगद्दी खाली,
बुझे हृदय से दुर्गावती ने बागडोर आके संभाली ।
दिल्ली तक लोगों ने रानी की तरुणाई उछाली,
पारस पत्थर है रानी के पास खबर डाली डाली ।
दुर्लभ था गज श्वेत,जिस पर चलती निरी भवानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
सुन सुन रानी की बड़वारी ना जाने क्या मन आई,
रानी को लेने अकबर ने डोली जल्दी भिजवाई ।
पारस व गज श्वेत संग डोली में आयें, है भलाई,
फिर ना कहना क्यों आखिर अकबर सेना है,चढ़ आई ।
जग देखेगा और जानेगा दिल्ली की महारानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
मजबूरी में बनी हूँ रानी वैसे तो मैं हूँ नारी,
शोहरत से बढ़कर नारी को होती है इज्जत प्यारी ।
वैसे तो है तेरी सेना मेरी सेना पर भारी,
मुझसे और तेरी सेना से रण हैं इस क्षण से जारी ।
दुर्गावती से दुर्गा चंडी बनी उस भव्य भवानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र से जारी ।
सेना लड़ी गढ़ा की अकबर की सेना से बढ़बढ़ कर,
ये काटा,वो मारा, नारे गूँजे अवनी अंबर पर ।
वैसे तो टिड्डी दल जैसे आती सेना चढ़-चढ़ कर,
हार गई अकबर की सेना पीछे-पीछे जा जा कर ।
पुरूष वेश में तलवारों तीरों की भव्य कमानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
षड़यन्त्रों से माहिर सेना हार रही थी दंगल में,
साँप, गुहेरे और बिच्छू सब काट रहे थे जंगल में ।
किसी जतन फँस ना पाती थी रानी उनके चंगुल में,
कहीं बिंधे विष बाणों से तो कहीं फँसे थे दलदल में ।
रानी पूरे वेग से प्रतिदिन बढ़ा रही हैरानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
भारी दौलत देकर साधा मुगलों ने था खलनायक,
जिसकी पत्नी रानी की थी सखी साथ ही थी धावक।
विवश किया था जिसने रण में साथ रहूँगी बन रक्षक,
कर पहचान था डाला घेरा जैसे घेरे सिंह शावक ।
चारों तरफ से तीर और बरछे चलेे बहादुर रानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
फिर भी रानी बचते बचते गढ़ मंडला की ओर बढ़ी,
जहाँ उसे मिल जाती गोड़ों,भीलों की सेना टुकड़ी ।
षड़यन्त्रों की चाल यहाँ कुछ और विशेष ही दिख पड़ी,
पीछे भी दुश्मन सेना थी आगे भी वो मिली खड़ी ।
गले आँख में घुसे विष बुझे तीर आत्म सम्मानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
घायल हाथी भागा लेकर रानी की घायल काया,
तीर निकाला आँख से मूँह में महादेव हर-हर आया ।
स्वामिभक्त सैनिक जिनने था गंगाजल मुँह में टपकाया,
भरी आँख और दुखी हृदय से दाह सभी ने करवाया ।
बुझे हृदय से लौट गया आसफ खाँ तब राजधानी को,
भूल न जाना दुनिया वालो गढ़ा क्षेत्र की रानी को ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “