शक्तिरूपा रूप धरा
नागपुर की भरी कचहरी में अक्कू को मारा है,
नारी की गरिमा संजोकर चंडी रूप सँवारा है ।
अत्याचार, बर्बरता से नहीं किया है समझौता,
शक्तिरूपा रूप धरा, साहस की देवी को न्यौता ।
दुष्ट दमन को हाथ कटारी लेकर क्या ललकारा है,
नारी की गरिमा संजोकर चंडी रूप सँवारा है ।
इसने रोका, उसने रोका, कहाँ मानने वाली थीं,
निकली अत्याचार मिटाने अबलाऐं मतवाली थीं ।
काट के कुहरा कायरता का अब फैला उजियारा है,
नारी की गरिमा संजोकर चंडी रूप सँवारा है ।
ऐसा ही कुछ साहस जोड़े,हर कस्बे हर बस्ती में,
लूट सके न नारी-अस्मत,कभी भेड़िये सस्ती में ।
भरकर हाहाकार दिलों में दुष्टों को संहारा है,
नारी की गरिमा संजोकर चंडी रूप संवारा है ।
छूरी कटारी ना मिल पाये आसानी से किसी तरह,
रोड़े पत्थर और लाठी तो मिल जाते हैं सभी जगह ।
समझो दुर्गा माता ने खुद आकर तुम्हें पुकारा है,
नारी की गरिमा संजोकर चंडी रूप संवारा है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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