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      || कह कर माता नदियों को ||

      कह कर माता नदियों को

      कहकर माता नदियों को,खुद पर पाप चढ़ाते हो,
      घिस-घिस कर साबुन शरीर पर नदियों में नहाते हो ।

      कैसी है ये मातृभक्ति और कैसी झूठी श्रद्धा,
      स्वयं नहाते हो ही कपड़ों का भी मैल बहाते हो ।

      भला कहाँ सूझे है तुमको करो सफाई तट की भी,
      उल्टे कूड़ा करकट तट का मैया में ले जाते हो ।

      दीवाली,शिवरात्रि आदि में घर में पूजा करते हो,
      वो कचरा संभाल कर रख रख कर मैया में डलवाते हो ।

      पूजा का कचरा फूलों की क्यारी में रख सकते थे,
      मैया कह मैया के भोलेपन का लाभ उठाते हो ।

      स्वच्छ साफ मैया को रखने का कर्तव्य निभा लेते,
      कुछ ना कुछ मैया के ऋण से उऋण तो हो पाते हो ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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