जय माँ वाणी
सरस्वती माँ ज्ञान दायिनी,
ज्योति ज्ञान की जरा जला दो।
मातु भारती इस समाज की,
सोई गरिमा पुनः जगा दो।।
भाव भरो हर एक शब्दों से सृजन आत्मा तक पहुंचे।
वीणावादिन, कमलवासिनी, जन-गण को नव पथ दिखला दो।।
सीमा पे हुंकार लिखूँ,
सैनिक का सीना तना रहे।
हर शब्दों मे शोला भडके,
बीर रसों मे सना रहे।।
दुश्मन के हर एक जवाब का हो सवाल फिर तूफानी।
वतन तिरंगा ऊँचा रहकर, लाल किला पे बना रहे।।
प्रेम पथों पे मातु भवानी,
रूप-रंग श्रृंगार बहा दूँ।
यौवन की इठलाती कलियां,
भँवरों को दर्शन करवा दूँ।।
मादकता मे पगी हुई सी नूतन एक तस्वीर लिखूँ।
कभी जुदाई ही न आये, ऐसे दिल मे भाव जगा दूँ।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
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