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      || एंटीबॉडीज़ या ऑटोएंटिबॉडीज़ | Antibodies or Autoantibodies ||

      नमस्कार मित्रों,

      हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता हमारी सेहत का बेहतर होना या ना होना तय करती है। रोग प्रतिरोधक (Immunity) क्षमता या रोगों से लड़ने की ताकत यानी इम्यूनिटी के बारे में पिछले 12-13 महीनों में आपने खूब सुना होगा। बाज़ार भी इम्युनिटी के नाम पर हरा-भरा हो गया था। हर्बल काढ़ों का अंधाधुंध सेवन किया गया, गिलोय, काली मिर्च, अदरक, सोंठ, तुलसी, मुलेठी, आंवला जैसी वनस्पतियों के नाम रट लिये गए थे।

      दबा दबाकर सुबह-शाम काढ़ा पिया गया और फिर खुद को सुपर ह्यूमन बनाने की दौड़ शुरु हुई, आखिर लड़ाई भी तो कोरोना से हो रही थी, उसी कोरोना (COVID-19) से जिसने आधुनिक और पारंपरिक विज्ञान को उसकी औकात भी दिखा दी। आधा अधूरा ज्ञान लेना और बेहिचक उसे बाँटना हमारा तो नैतिक कर्तव्य टाइप का मामला है। कोरोना काल में कोरोना ने तो खूब तकलीफ दे रखी थी, और फिर इन 12-13 महीनों में व्हाट्सएप्प, फेसबुक, टीवी पर भी नए-नए टाइप के काढ़ों और नुस्खों ने भी खूब सताया।

      हालांकि हर्बल नुस्खों और बेहतर सेहत और इम्युनिटी के लिए खूब सलाहे दीं जा रही है लेकिन हर बार ये कोशिश भी करनी चाहिए कि जनता को चेताया जाए और नुस्खों (home remedies) के लिमिटेशन्स भी बताए जाएं। हमारी जनता इन्नोसेंट है, जमकर के काढ़ा पीने लगी और फिर एक के बाद गैस्ट्रोइंटेस्टायनल रोगियों की बाढ़ सी आ गयी।

      इस दौर में जितने पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रिक डिसऑर्डर और गैस्ट्रोइंटेस्टायनल के रोगी उस बड़े अस्पताल में आ रहे हैं, उतने एक साथ कभी नहीं देखे गए। तकलीफ सिर्फ यहाँ तक सीमित नहीं है, ‘ऑटोइम्यून डिसऑर्डर्स’ को लेकर ज्यादा डर है। वजह ये कि जब शरीर में हद्द से ज्यादा इम्यूनिटी बन जाए यानी खूब सारी एंटीबॉडीज़ तैयार हो जाएं तो ये शरीर के लिए मौज की बात नहीं बल्कि ऐसा होना खतरे की घंटी बज जाना है।

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      मुद्दे की बात ये है कि इम्यूनिटी का गुल्लक ठूंस ठूंसकर भर दिया गया हो तो खुद को खाली करने के लिए गुल्लक खुद ही के सिक्कों को चबाने लग जाता है। शरीर में इम्यूनिटी हद्द से ज्यादा हो जाए यानी शरीर के रोगों से लड़ने वाली फ़ौज ज्यादा बन जाए तो इम्यूनिटी आक्रमण के लिए बैचेन हो जाती हैं। जब कोई वायरस, कोई बैक्टिरिया या कोई खतरा आक्रमण करने के लिए नहीं मिलता है तो ये खुद अपने शरीर के भीतर ही हमला बोलने लगती हैं, ये एंटीबॉडीज़ अब ऑटोएंटिबॉडीज़ बन जाती हैं और खुद अपने शरीर पर आक्रमण बोलकर शरीर के खिलाफ हल्लाबोल कर देती हैं।

      इन ऑटोएंटीबॉडीज़ द्वारा किसी एक अंग को टारगेट किया जाता है, जैसे पैनक्रियाज़, जो इंसुलिन का निर्माण करता है। ये ऑटोएंटीबॉडीज़ पैनक्रियाज़ की कार्य क्षमता को शून्य कर देते हैं और इस तरह इंसान को टाइप 1 डायबिटीज़ हो जाती है। कभी-कभी ये ऑटोएंटीबॉडीज़ एक साथ बहुत सारे अंगों पर आक्रमण करती हैं और फिर लूपस, रुमेटॉयड आर्थरायटिस जैसे रोग हो जाते हैं।

      कुल मिलाकर इम्यूनिटी खूब बढ़ा लें लेकिन ये भी ध्यान रहे कि गुल्लक को समय-समय पर खाली भी करना पड़ेगा।

      अब इम्यूनिटी को खाली कैसे करेंगे?

      ट्रेडमिल पर मत दौड़िये, मोबाइल-कंप्यूटर पर सेहत न बनाएं, ऑनलाइन कसरत से बचें, चार दिवारी के बाहर की दुनिया को एक्सप्लोर करने की कोशिश करें। पार्क में जाएं, दौड़ लगाएं, पैदल चलें, फूलों की खुश्बू को महसूस करें, धूल-मिट्टी की गंध का अनुभव लें।

      छींक आ जाए तो मान लीजिए कि वायरस, बैक्टिरिया या कोई विदेशी पार्टिकल शरीर के भीतर घुसा और उसको भगाने के लिए इम्यूनिटी ने धावा बोला और छींक के साथ एक झटके में विदेशी मेहमान बाहर और इम्यूनिटी का इस्तेमाल भी हुआ।

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      WARNING : If the problem isn’t solved by lifestyle changes alone then don’t hesitate to consult a doctor as this article is for knowledge base.

      लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद मित्रों.

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