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      || इंतजार बादल का ||

      इंतजार बादल का

      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का,
      घनी बदरी चुनरी ओढ़ आये घटा श्यामल का ।

      तली से लगी नदियां नाले सूखे सूखे बह रहे,
      झरने,कुएँ और तालाब अपनी व्यथा कह रहे,
      सामना कर पा रहे ना जेठ के दावानल का,
      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का ।

      खेत तरफ अब तो पंछी परिन्दे भी नहीं तकत,
      बाड़ तोड़ घुसते थे जो पशु भी नहीं झकत,
      रक्त युक्त नीर नयन से बह रहा ज्यूं घायल का,
      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का ।

      कहां तक बहायें श्रमिक चुक गया स्वेद भी अब,
      प्रकृति पल-पल करे जल की कमी का खेद भी अब,
      धूप की अगन से टूटा धैर्य उपवन,जंगल का,
      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का ।

      सुबह शाम जीव,मानव ताकते हैं नभ की ओर,
      किन्तु चला किसी का ना बादलों पर जरा जोर,
      पूज्य देवता हैं बादल स्त्रोत पृथ्वी पर जल का,
      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का ।

      बरस जायें बादल तो हरस उठेगा तन मन,
      झूम उठेगी प्रकृति,सरस उठेगा जीवन,
      अनुभव करेंगे सभी जन प्रकृति के स्नेहांचल का,
      तपी हुई धरती को है अब इंतजार बादल का ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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