चांदनी की बारात
शाम ढलने को है रात आने को है,
चांदनी भी उतर आई आकाश से,
भीनी भीनी सी खुशबू भी बहने लगी,
ज्यों बहारों में,गुलसे हर इक शाख से ।
चांद दूल्हा सा बनकर चला जा रहा,
तारे शामिल हैं यों उसकी बारात में,
झिलमिलाती सी किरणों का सेहरा पहन,
रौशनी में नहाकर हसीं रात में ।
चांदनी सज रही बन के दुल्हन हसीं,
शबनमी मोतियों के से जेवर हों ज्यों,
लहरें झरनों में चमचम करें इस तरहा,
शाने पर झिलमिलाते से तेवर हों ज्यों ।
कलियां डोलें हवाओं की आवाज पे,
नाचे बेला चमेली मधुर ताल में,
जुगनुओं के सितारे चमकते से हैं,
धानी चूनर के झिलमिल भरे जाल में ।
यों दरख्तों की चरमर लगे ढोल सी,
फड़फड़ाएं जो पत्ते हों शहनाईयां,
ठंड ठंडी हवाओं के झोंकों में आ,
झुक सलामी सी करती हैं पुरवाईयां ।
डोली सज ली नजरों बहारों से जब,
लो बिदा की सुहानी घड़ी आ गई,
भर के दामन चमन के हंसी फूलों से गुनगुनाती हुई सुबहा आ गई ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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