दुनिया
रंग-बिरंगी इस दुनिया मे, काफी कुछ घोटाले है।
दूर के ढोल सुहाने लगते, लेकिन खेल निराले है।।
दुनिया के हर पहलू झाँको, कदम- कदम पे गड्ढे है।
धोखाधड़ी बिछी है पग-पग, बहुरुपियो के अड्डे है।।
अधरो पर मुस्कान बिखेरे, कर्म करे वो काले है।
दूर के ढोल सुहाने लगते, लेकिन खेल निराले है।।
हर समाज मे ठेकेदारी और दलाली है भाई।
आफिस हो या कारोबारी, छीना-झपटी है छाई।।
भोले-भाले इंसानों के बनते काम बिगाडे है।
दूर के ढोल सुहाने लगते, लेकिन खेल निराले है।।
इस दुनिया मे आकर जिसने, दुनियादारी न सीखी।
भला-बुरा और हित-अनहित पर, नजर पारखी न फेकी।।
उनके जीवन पथ पे काँटे, बिछे कँटीले वाले है।
दूर के ढोल सुहाने लगते, लेकिन खेल निराले है।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
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