भ्रष्टाचार
लिप्त हर कोई है पल-पल ऐसे भ्रष्टाचार में,
कोई दफ्तर में कर रहा, कोई करे बाजार में।
कोई कर रहा मिलावट सोने के कुछ कैरेट में,
कोई जोड़ रहा पीतल, सोने वाले हार में।
कपड़े वाला मीटर पर, कपड़ा यूँ फिसलाये है,
आधा मीटर कम हो जाता पक्का मीटर चार में।
सब्जी वाला रखे तराजू लेकिन ऐंगिल ऐसा है,
पैसे वो लेता नगद पर दे रहा ज्यों उधार में।
पहले तो करता है कोशिश बासी सब्जी देने की,
तिस पर होता बाँट भी नकली, छोटा जो आकार में।
बिजली मीटर रीडिंग वाला रीडिंग कर एहसान करे,
फिर भी बिल आता है अधिक, सौ की जगह हजार में।
दूध की तो चर्चा ही छोड़ो, प्रतिदिन होत मिलावट है,
फेन भी होता, नाप भी छोटा, जाएं कहाँ संसार में।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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