सावन और प्रदोष व्रत दोनों ही शिव को बहुत प्रिय है। सावन का महीना 4 जुलाई से 31 अगस्त तक चलेगा। वैसे तो हर महीने की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। हर माह में दो प्रदोष व्रत होते हैं लेकिन इस बार सावन में 4 प्रदोष व्रत का संयोग बन रहा है।
सावन रवि प्रदोष व्रत की तिथि
सावन अधिकमास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 30 जुलाई 2023 को सुबह 10.34 को शुरू होगी और 31 जुलाई 2023 को सुबह 07.26 मिनट पर समाप्त होगी।
ये सावन अधिकमास का प्रदोष व्रत होगा, क्योंकि सावन में अधिकमास 18 जुलाई 2023 से 16 अगस्त 2023 तक रहेगा।
शिव पूजा समय – रात 07.14 – रात 09.19
अवधि – 2 घंटे 6 मिनट
सावन में प्रदोष व्रत का महत्व
सावन में प्रदोष व्रत रखने वालों पर शिव जी मेहरबान रहते हैं, व्रती को प्रदोष व्रत के प्रभाव से वैवाहिक सुख, संतान सुख, धन प्राप्ति और शत्रु-ग्रह बाधा से मुक्ति मिलती है।
इस व्रत में शिव पूजा प्रदोष काल में की जाती है। प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होता है और 45 मिनट बाद तक मान्य होता है।
धार्मिक मान्यता है कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं।
इसलिए है अधिकमास में प्रदोष व्रत का महत्व ज्यादा
अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है और ये मास भगवान विष्णु को समर्पित होता है, लेकिन भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी तक पाताल लोक में सोने चले जाते हैं।
ऐसे में चार्तुमास में धरती की निगरानी भगवान शिव की होती है।
इसलिए इस मास में पड़ने वाले हर तीज त्योहार पर केवल भगवान वष्णु का ही नहीं भगवान शिव का भी विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
यही कारण है कि प्रदोष व्रत करने वाले मनुष्य पर भगवान शिवका विशेष आशीर्वाद होता है।
इस व्रत को करने से मनुष्य का मान-सम्मान, धन-ऐश्वर्य आदि बढ़ता है।
वहीं, संतान और दांपत्य से जुड़े कष्ट दूर हो कर सुखी पारिवारिक जीवन की प्राप्ति भी होती है।
प्रदोष व्रत की पूजा विधि
स्नान कर दिन दिन व्रतीजनों के सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान शिव के समक्ष व्रत और पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद जहां भगवान शिव की पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर दें।
इसके बाद शिवजी समेत उनके परिवार के स्थापित करें।
सफेद आसान पर खुद भी बैठ जाएं और भगवान को भी चौकी पर भी सफेद आसन ही दें।
चौकी पर आसन बिछाने से पूर्व उस पर कुमकुम से स्वास्तिक बना दें।
इसके बाद शिव जी को बेलपत्र, धतूरा और सफेद फूलों की माला पहनाएं और देवी पार्वती का श्रृंगार कर उन्हें लाल फूल और सिंदूर अर्पित करें।
साथ ही गणपति जी और कार्तिकेय को भी पुष्प अर्पित कर दूर्वा चढ़ाएं।
इसके बाद शिवजी के समक्ष सरसों के तेल का दीया जलाएं और भगवान शिव का ध्यान करते हुए अपनी मनोकामना उनके समक्ष रखें।
इसके बाद उन्हें खीर का भोग लगाएं और सभी में वितरित करें।
इसे बाद भगवान की आरती करें और कथा का श्रवण करें।
प्रदोष व्रत की कथा
प्रदोष कथा के अनुसार एक गांव में एक निर्धन विधवा ब्राह्मणी और उसका पुत्र रहते थे। दोनों ही भिक्षा मांग कर अपना जीवन चलाते थे। ब्राह्मणी और उसका पुत्र दोनों ही बहुत धार्मिक प्रवृत्ति के थे। ब्राह्मणी कई वर्षों से प्रदोष व्रत करती आ रही थी। एक बार ब्राह्मणी का पुत्र त्रयोदशी तिथि पर गंगा स्नान कर घर लौट रहा था कि उसके लुटेरे आ गए। लुटेरों ने उससे उसका सारा सामान छीन कर भाग गए। शोरगुल सुनकर राजा के सैनिक वहां पहुंचे और ब्राह्मणी के पुत्र को लुटेरा समझ कर राजा के सामने ले गए। राजा ने बिना ब्राह्मण युवक की बात सुने बगैर उसे कारावास में डलवा दिया। उसी रात राजा को एक स्वप्न आया जिसमें भगवान शिव आए और ब्राह्मण युवक को मुक्त करने का आदेश दिए। नींद खुलते ही राजा सीधे कारागार पहुंचे और युवक को मुक्त करने का आदेश दिया।
राजा युवक को साथ लेकर महल में ले आए और युवक का सम्मान किया। राजा ने युवक को कहा कि वह कुछ भी दान में मांग सकता है, तब ब्राह्मण युवक ने राजा से केवल एक मुठ्ठी धान मांगा। राजा उसकी मांग को सुनकर अचरज में पड़ गए। राजा ने युवक से प्रश्न किया कि सिर्फ एक मुठ्ठी धान से क्या होगा और भी कुछ मांग लो, ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता है। युवक ने बड़ी ही विनम्रतापूर्वक राजा से कहा, हे राजन इस समय यह धान मेरे लिए संसार का सबसे अनमोल धन है। इसे मैं अपनी माता को दूंगा जिससे वे खीर बना कर भगवान शिव को भोग लगाएंगी। फिर हम इसे ग्रहण करेंगे। राजा युवक की बातों को सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मंत्री को आदेश दिया कि ब्राह्मणी को सम्मान सहित दरबार में लाया जाए। मंत्री ब्राह्मणी को लेकर दरबार पहुंचे। राजा ने सारा प्रसंग ब्राह्मणी को सुनाया और उनके पुत्र की प्रशंसा करते हुए ब्राह्मणी पुत्र को अपना सलाहकार नियुक्त किया और इस प्रकार निर्धन ब्राह्मणी और उसके पुत्र का जीवन बदल गया।