More
    28.1 C
    Delhi
    Thursday, June 1, 2023
    More

      रंभा तीज 2023 | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को रंभा तीज मनाई जाती है। इस बार यह तीज 22 मई को है। इस दिन अप्सरा रंभा के विभिन्न नामों की पूजा करने से व्यक्ति को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत अगर कन्याएं रखती हैं तो उन्हें योग्य वर की प्राप्ति होती है, तो चलिए जानते हैं रंभा तीज के दिन कैसे पूजा अर्चना करनी चाहिए और इसका क्या महत्व होता है।

      रंभा तीज की पूजा विधि 

      रंभा तीज के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़ा धारण कर लें। इसके बाद सूर्य की तरफ मुख करके बैठ जाएं और दीपक जलाएं। इस दिन विवाहित स्त्रियां सौभाग्य और सुंदरता की प्रतीक रंभा, धन की देवी मां लक्ष्मी और सती की विधि-विधान के साथ पूजा करती हैं। इस दिन कुछ जगहों पर चूड़ियों के जोड़े को रंभा के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। साथ ही इस दिन रंभोत्कीलन यंत्र की भी पूजा की जाती है। अप्सरा रंभा को इस दिन चंदन, फूल आदि अर्पित किया जाता है। इसके अलावा आर रंभा तीज को हाथ में अक्षत लेकर इन मंत्रों का जाप करेंगे तो जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहेगी।

      • ॐ दिव्यायै नमः।
      • ॐ वागीश्चरायै नमः।
      • ॐ सौंदर्या प्रियायै नमः।
      • ॐ योवन प्रियायै नमः।
      • ॐ सौभाग्दायै नमः।
      • ॐ आरोग्यप्रदायै नमः।
      • ॐ प्राणप्रियायै नमः।
      • ॐ उर्जश्चलायै नमः।
      • ॐ देवाप्रियायै नमः।
      • ॐ ऐश्वर्याप्रदायै नमः।
      • ॐ धनदायै धनदा रम्भायै नमः। 
      ALSO READ  High IQ: The World's Smartest Countries
      रंभा तीज का क्या महत्व 

      इस दिन विधिपूर्वक पूजा पाठ करने से जीवन में खुशहाली आती है और दांपत्य जीवन भी अच्छा बना रहता है। यह व्रत पति की लंबी आयु के लिए सुहागिन स्त्रियां रखती हैं। वहीं, कुंआरी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं।

      अप्सराओं का पौराणिक संदर्भ

      अप्सराओं का संबंध स्वर्ग एवं देवलोक से होता है। स्वर्ग में मौजूद पुण्य कर्म, दिव्य सुख, समृद्धि और भोगविलास प्राप्त होते हैं। इन्हीं में अप्सराओं का होना जो दर्शाता है रुपवान स्त्री को जो अपने सौंदर्य से किसी को भी मोहित कर लेने की क्षमता रखती हैं। अप्सराओं के पास दिव्य शक्तियां होती है जिनसे यह किसी को भी सम्मोहित कर लेनी की क्षमता रखती हैं।

      अथर्वेद एवं यजुर्वेद में भी अप्सरा के संदर्भ में विचार प्रकट होते हैं। शतपथ ब्राह्मण में इन्हें चित्रित किया गया है। ऋग्वेद में उर्वशी प्रसिद्ध अप्सरा का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त पुराणों में भी तपस्या में लगे हुए ऋषि मुनियों की त्पस्या को भंग करने के लिए किस प्रकार इंद्र अप्सराओं का आहवान करते हैं। कुछ विशेष अप्सराओं में रंभा, उर्वशी, तिलोत्तमा, मेनका आदि के नाम सुनने को मिलते हैं।

      ऊर्वशी श्राप से मुक्त हो गई और पुरुरवा, विश्वामित्र एवं मेनका की कथा, तिलोतमा एवं रंभा की कथाएं बहुत प्रचलित रही हैं। इन्हीं में रंभा का स्थान भी अग्रीण है। अप्सराएँ अपने सौंदर्य, प्रभाव एवं शक्तियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

      समुद्र मंथन रम्भा उत्पति कथा

      दैत्यराज बलि का राज्य तीनों लोकों पर स्थापित था। इन्द्र सहित देवतागण भी बलि से भयभीत हो उठे। ऎसे में देवों के स्थान को पुन: स्थापित करने के लिए ब्रह्मा जी देवों समेत श्री विष्णु जी के पास जाते हैं। भगवान श्री विष्णु के आग्रह पर समुद्र मंथन आरंभ होता है। जो दैत्यों और देवों के संयुक्त प्रयास से आगे बढ़ता है। क्षीर सागर को मथ कर उसमें से प्राप्त अमृत का सेवन करने से ही देव अपनी शक्ति पुन: प्राप्त कर सकते थे।

      ALSO READ  कुंडली का द्वादश भाव | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      ऎसे में समुद्र मंथन के लिये मन्दराचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को नेती बनाया जाता है। भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रख लेते हैं और उसे आधार देते हैं। इस प्रकार समुद्र मंथन के दौरान बहुत सी वस्तुएं प्राप्त होती हैं। इनमें रम्भा नामक अप्सरा और कल्पवृक्ष भी निकलता है। इन दोनों को देवलोक में स्थान प्राप्त होता है। इसी में अमृत का आगमन होता है और जिसको प्राप्त करके देवता अपनी शक्ति पुन: प्राप्त करते हैं और इन्द्र ने दैत्यराज बालि को परास्त कर अपना इन्द्रलोक पुन: प्राप्त किया।

      अमृत मंथन में निकले चौदह रत्नों में रंभा का आगमन समुद्र मंथन से होने के कारण यह अत्यंत ही पूजनिय हैं और समस्त लोकों में इनका गुणगान होता है। समुद्र मंथन के ये चौदह रत्नों का वर्णन इस प्रकार है –

      लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुराधन्वन्तरिश्चन्द्रमाः।

      गावः कामदुहा सुरेश्वरगजो रम्भादिदेवांगनाः।

      रम्भा तीज की कथा

      रंभा तीज के उपल्क्ष्य पर सुहागन स्त्रियां मुख्य रुप से इस दिन अपने पति की लम्बी आयु के लिए और अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं। रम्भा को श्री लक्ष्मी का रुप माना गया है और साथ ही शक्ति का स्वरुप भी ऎसे में इस दिन रम्भा का पूजन करके भक्त को यह सभी कुछ प्राप्त होता है।

      रम्भा तृतीया पर कथा इस प्रकार है की प्राचीन समय मे एक ब्राह्मण दंपति सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहे होते हैं। वह दोनों ही श्री लक्ष्मी जी का पूजन किया करते थे। पर एक दिन ब्राह्मण को किसी कारण से नगर से बाहर जाना पड़ता है वह अपनी स्त्री को समझा कर अपने कार्य के लिए नगर से बाहर निकल पड़ता है। इधर ब्राह्मणी बहुत दुखी रहने लगती है पति के बहुत दिनों तक नहीं लौट आने के कारण वह बहुत शोक और निराशा में घिर जाती है। एक रात्रि उसे स्वप्न आता है की उसके पति की दुर्घटना हो गयी है। वह स्वप्न से जाग कर विलाप करने लगती है। तभी उसका दुख सुन कर देवी लक्ष्मी एक वृद्ध स्त्री का भेष बना कर वहां आती हैं और उससे दुख का कारण पुछती है। ब्राह्मणी सारी बात उस वृद्ध स्त्री को बताती हैं।

      ALSO READ  Bhagwan Shri Krishna's Teachings For The Adulthood

      तब वृद्ध स्त्री उसे ज्येष्ठ मास में आने वाली रम्भा तृतीया का व्रत करने को कहती है। ब्राह्मणी उस स्त्री के कहे अनुसार रम्भा तृतीया के दिन व्रत एवं पूजा करती है ओर व्रत के प्रभाव से उसका पति सकुशल पुन: घर लौट आता है। जिस प्रकार रम्भा तीज के प्रभाव से ब्राह्मणी के सौभाग्य की रक्षा होती है, उसी प्रकार सभी के सुहाग की रक्षा हो।

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,223FansLike
      56FollowersFollow
      604SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles