More
    29 C
    Delhi
    Saturday, April 27, 2024
    More

      || सुखिया मालिन ||

      सुखिया मालिन

      आज बैंक से घर लौटते समय रास्ते में सुखिया मालिन दिखी, लगभग पाँच फुट लंबाई, दुबली-पतली नौ हाथ की काँछ वाली साड़ी पहने बूढ़ी जर्जर पर कर्मयोगिनी सी। मुझसे रहा न गया रिक्शा रोककर मैंने पूछा कैसी हो मालिन ? वह मुझे पहचानती हुई बोली अच्छी हूँ बेटा जिंदगी कट रही है जैसे-तैसे । मैने कहा अब तो तुम्हारे पास सब कुछ है, बेटा नौकरी में है, माली को पेन्शन मिलती है, बेटियाँ ब्याह गई हैं। वह बोली हाँ ! वैसे तो आप लोगों की दया से सब है बेटा पर आप तो जानती हैं कि जब तक जीवन है तब तक कुछ ना कुछ तो लगा ही रहता है। अब तो मैं बस पुराने दो तीन बंगलो में के बगीचे में पानी डालती हूँ क्योंकि वो तो मेरे ऐसे घर हैं जो मरकर ही छूटेंगे। अच्छा है, कभी घर आना, कहकर मैं अपने घर आ गई।

      घर तो आ गई पर मेरी सोच में सुखिया मलिन की तमाम जिंदगी, चलचित्र की भाँति तैर गई। लगभग 30-35 साल पहले रीवा की सुखिया हमारी कालोनी के एक कमरे वाले मकान में किराये से रहने अपने दो बच्चों के साथ आई थी। उसका पति कार्पोरेशन में माली की सरकारी नौकरी करता था। मालिन ने भी कालोनी के तीन चार घरों के बगीचों में पानी डालने का काम पकड़ लिया था। सुबह चार बजे सोकर उठती, खाना बनाती, पति का डिब्बा बांधती बच्चों को स्कूल भेजकर बंगलों के बगीचों की देखरेख करती, उसका चाय नाश्ता पहले बंगले के मालिकों द्वारा दिया जाता दोपहर का खाना अंतिम बंगले में होता क्योंकि हर बंगले में कहीं मिर्च की डंडी तोड़ना, कहीं धनिया पीसना, कहीं गेहूँ पिसवाना जैसे काम भी वह कर देती थी। हर काम का उसे अलग से पैसा मिलता, साथ ही हमदर्दी भी कि औरत होकर कितना काम करती है।

      वह इसी प्रकार से काम करती रही। साथ ही अगले पाँच छह वर्ष में उसे और तीन बच्चे हो गये। कुल तीन बेटियाँ, दो बेटों की देखरेख के साथ-साथ उसका काम भी बढ़ता गया। वह डेलिवरी के समय मात्र आठ-दस दिन आराम करती फिर पहले के समान काम में जुट जाती। अब लगभग पंद्रह-बीस बंगले की फूलपत्तियों की देखरेख करना पानी देना सूखे व पीले पत्ते निकालना, कहीं घास लगाना कहीं अलग करना इसके साथ ही जिसने जो काम बोला उसे मालिन ने कभी मना नहीं किया। फलस्वरूप हर त्यौहार पर दशहरा हो, दिवाली हो, रक्षाबंधन हो, मालिन को दो-चार सौ इनाम व चार छह नई साड़ियाँ मिल जाती। उसके बच्चों को मालिकों के बच्चों के छोटे हुए अच्छे-अच्छे कपड़े मिल जाते । मालिन इतनी अधिक मितव्ययी थी कि, माली का वेतन बैंक में जमा करती जाती थी।

      इसी बीच जहाँ पर वह रहती थी उस मकान मालिक ने कमरा खाली करने का आदेश दे दिया। दूसरा घर अधिक किराये पर मिल रहा था। मालिन ने हर घर से पाँच-पाँच सौ रु. एडवांस लेकर एक छोटा सा प्लाट खरीद लिया। अब क्या था हर बंगले में मालिन के प्लाट के चर्चे होते। अगले दो माह में मालिन के प्लाट पर मकान का नक्शा कार्पोरेशन से पास हो गया, नींव के लिये एक ठेकेदार ने बिना दुलाई लिये सस्ते पत्थर लाकर दे दिये, दूसरे ने सस्ती सीमेंट दिला दी।

      ALSO READ  || राम धनुष टूटने की सत्य घटना ||

      तीसरे घर ने किसी और प्रकार से मदद कर दी तो चौचे ने किसी और तरह इस प्रकार मालिन के चार कमरे, बरामदा, रसोई, स्नानागार वगैरह बात की बात में तैयार हो गये थोड़ा बहुत पैसा तो वह पति के वेतन का बचाये रखे ही थी। इस मकान का मुआयना करने बड़े-बड़े इंजीनियर, ठेकेदार पहुँचे क्योकि हर घर में उनकी पत्नियों की हिदायत थी कि मालिन का घर देखकर आयें और जो संभव हो मदद करें। और मालिन बाई तो हर घर द्वारा दी गई मदद को दूसरे घर में दस-दस बार बताती थी।

      बंगले वालों में मालिन की मदद हेतु कॉम्पेटीशन चलता था। इस प्रकार मालिन किराये के घर से अपने घर में आ गई। गृह प्रवेश की कथा में भी उसे उपहार दिये गये। ये सब मालिन की मेहनत व मीठे व्यवहार का नतीजा था।

      कुछ दिन बाद ही मालिन की बड़ी बेटी की शादी हुई किसी ने गेहूँ के दो बोरे, किसी ने रेडियो, किसी ने सोफा तो किसी ने पलंग। बात की बात में विवाह की तैयारी हो गई जिनके यहाँ मालिन काम नहीं भी करती थी उन्होंने भी साड़ी-ब्लाउज या बरतन आदि दिये क्योंकि वे सभी मालिन के व्यवहार से खुश थे। कालोनी के हर घर का कुछ न कुछ काम मालिन के मत्थे जो था। किसी के बच्चे को 12 बजे टिफिन पहुँचाना, किसी की बाजार से सब्जी ला देना, किसी का गेहूँ पिसाना। लगभग आधे घरों का काम करने अब उसके बच्चे भी मदद करने लगे थे।

      मेरे बाजू वाले घर में भैंस थी करीब आठ-दस बंगलों का दूध लाने का काम वह करती थी अतः डेरी वाले घर के लोग या नौकर सोकर न उठ पाते थे उस समय वह पहुँच जाती थी। दिसंबर-जनवरी की कड़कड़ाती ठंड हो या सावन भादों की बिजली-पानी की डरावनी रातें उसे चार बजे सुबह आने से कभी नहीं रोक पाई कभी-कभी चार के पौने चार, भले ही रहें पर सवा चार बजने से उसके काम पिछड़ जाते थे। इतने तड़के पाँवों में मामूली स्लीपर पहने पुरानी शाल ओढ़े आठ- दस डिब्बे लटकाये कोई उसे देखेगा तो पागल ही समझेगा, तात्पर्य ये कि जिस आंधी-पानी के मौसम में जानवर भी निकलना पसंद न करते इन्सान तो दूर की बात है वैसे मौसम में मालिन बाई बंगलों में पानी डाल रही होती या दूध के डिब्बे लिये घर-घर बांट रही होती।

      ना पढ़ी, न लिखी अंगूठा लगाने वाली मालिन बाई की अपनी हैसियत अनुसार जीवन बीमा पालिसी भी थी। पोस्ट आफिस की पास बुक भी, बैंक की एफ.डी., आर.डी. हर साल वह घर का कार्पोरेशन टैक्स भरती ये बात अलग है यदि कभी अधिक टैक्स का कागज आ गया तो हर बंगले में पता चल गया कि इस साल मालिन के घर का टैक्स इतना आया है और कोई ना कोई उसकी एप्लीकेशन बनाकर कार्पोरेशन पहुँचाता और टैक्स कम हो जाता।

      एक-एक कर मालिन ने तीनों बेटियों की शादी शानदार तरीके से की, शानदार से मतलब उसकी हैसियत के लोगों की अपेक्षा उसकी बेटियों की शादी में अधिक व्यवहार आया यहाँ तक कि तीसरी लड़की की शादी में तीन टेबिल फैन आ गये पर मालिन बाई ऐसी न थी कि तीनों बेटी को देती उसने दो पंखे बदलकर सीलिंग फैन लिये व अपने घर के कमरों में लगा लिये। चार कमरों में से एक कमरा, पंखा-पलंग सहित किराये पर चलता था पांच सौ प्रतिमाह पर । भले ही पलंग किसी बंगले से मिला हुआ पुराना-सुराना हो उसी को वार्निश करवाकर नया जैसा बनवाया जाता तब किरायेदार के कमरे में रखा जाता।

      ALSO READ  आपका कौन सा ग्रह बली है | राशि और ग्रहबल के बारे में जानिये | 2YoDo विशेष

      एक-एक कर दोनों बेटों की शादी भी हो गई। एक बेटे की पक्की नौकरी लग गई, दूसरा कहीं प्राईवेट नौकरी करने लगा उनके भी आगे दो-दो बच्चे हो गये पर मालिन की दिनचर्या टस से मस नहीं हुई। घर में बहुएँ आ जाने से मालिन अब दोपहर को घर आने की बजाय शाम को ही घर आती। दोपहर का खाना किसी भी बंगले में मिल जाता खाकर वही कहीं बरामदे के कोने में आधा घंटा लेट कर आराम करती, उठकर फिर पौधों को पानी देना शुरु करती। बारिश की घास काट कर डेयरी में घास का गट्ठा बेच देती। वहीं कहीं शाम की चाय पीकर पच्चीस-पचास रुपये, साड़ी के कोने में बांधकर घर पहुँचती थी। घर में वह अब मात्र शाम का खाना खाती थी कभी-कभी बंगलों से शाम का खाना भी घर भर को मिल जाता वह भी न बनाना पड़ता।

      इतना सब होने के बाद भी मालिन के पति (माली) को बहुत कम लोग जानते थे। वह सुबह अपनी नौकरी पर चला जाता शाम को लौटता खा-पी कर सो जाता। माली से चौगुनी मेहनत करके चौगुना फैलान मालिन बाई का रहता था पर चौगुनी इनकम भी होती थी।

      इस बीच मेरी शादी भी हो चुकी थी और मैने भी इसी कालोनी में मकान बनवा लिया था। मेरे घर की मिर्च-मसाला पीसना, गेहूँ पिसवाना आदि मालिन करने लगी। ये क्रम सालों चला।

      मुझसे मालिन की आत्मीयता कुछ विशेष थी उसके पीछे एक घटना थी। एक दिन रात को डेढ़-दो बजे के करीब मालिन ने हमारा गेट खटखटाया। हमने देखा कि वह जोर-जोर से रो रही थी। मैंने पूछा कि क्या हो गया है मालिन क्यों रो रही हो। वह बोली मेरे बड़े बेटे के पेट में भयंकर दर्द है पेशाब नहीं हो रही पेट लगातार फूल रहा है। उसे जाने क्या हो गया है। मैंने कहा कि तुम कई डाक्टरों के यहाँ काम करती हो वहाँ नहीं गई। वह बोली, गई थी बेटा। पर कह रहे हैं कि तुरंत अस्पताल ले जाना पड़ेगा वर्ना खतरा है। ऐसे कोई इलाज करने तैयार नहीं है।

      मैं समझ गई कि इस डर से इलाज नहीं कर रहे कि कहीं उसे कुछ हो गया तो मुसीबत हो जायेगी। इस बीच मेरे पति व किरायेदार जग चुके थे। ठंड के दिन पंद्रह- बीस किलोमीटर दूर अस्पताल। रास्ते में एक ऐसी जगह है जहाँ अक्सर छुरेबाजी, लूटपाट होती है ये सोच अच्छे-अच्छे दमदार भी आधी रात में उस राह से निकलने से डरते थे इसीलिये शायद सब बंगले वालों ने उसे निराश लौटा दिया था हालांकि मेरे घर में बगीचा वगैरह नहीं था ना ही वह प्रतिदिन मेरे घर आती थी पर न जाने उसका कौन सा विश्वास था कि उसे मेरा गेट खटखटाने को मजबूर कर बैठा ?

      ALSO READ  शास्त्रों के अनुसार इन 6 कारणों से जल्द होती है मौत | जानिए पूरी जानकारी | 2YoDo विशेष

      उन दिनों मेरे घर के आसपास के बीस-तीस घर में से मात्र मेरे घर कार (गाड़ी) थी। आज तो कार आम हो गई है। मैंने खुशामद करके अपने पति को तैयार किया। घर की तीसरी मंजिल पर एक गरीब बहादुर रहता था जो होमसाइंस कालेज में चौकीदार था। तीसरी मंजिल के स्टोरनुमा कमरे में हमने उसे बिना किराये के इसलिये रहने दिया था कि कभी वक्त में आदमी काम आता है। चोरों का भय भी रहता था सो हमने सोचा कि कभी ना कभी आदमी आदमी के काम आता है वह भी मेरे पति के साथ जाने को तैयार हो गया। तीसरा मेरा बेटा जो मात्र चौदह-पंद्रह वर्ष का था वह भी बोला कि मैं भी जाऊँगा। एक मालिन का पति। इस प्रकार चार पाँच लोग डंडा आदि कार में रखकर हिम्मत करके मालिन के बेटे को लेकर अस्पताल पहुँचे। डाक्टरों को जगाया एक मामूली सा आपरेशन करने से उसे आराम मिल गया उसे पेशाब के रास्तें में पथरी या कुछ अन्य अड़चन पेशाब रोक रही थी, जिससे उसका पेट फूल रहा था भयंकर दर्द भी हो रहा था। सुबह चार बजे के लगभग वे सब उसे लेकर लौट आये उसे आराम लग गया था। हम सब ये सोचकर आत्मिक शांति महसूस कर रहे थे कि इतने दुखदायी समय में हमने किसी की मदद की।

      इस घटना के बाद से मालिन हमारी बिना वेतन की गुलाम बन गई, मेरे मना करने के बाद भी उसने मेरे घर में बगीचा तैयार किया। कभी माँ कभी बेटा प्रतिदिन आठ-नौ बजे के लगभग मेरे घर आते व कुछ काम तो नहीं है पूछते मैं पैसे देती तो नहीं लेते, मालिन कहती अरे बेटा क्यों शर्मिंदा कर रही हो इसकी जिंदगी तो तुम्हारी बचाई हुई है ना तो क्या जिंदगी से बढ़कर पैसा है ?

      खैर ये सिलसिला वर्षों चला उसका बेटा आज भी मेरे घर आता है, पर मालिन बस दिवाली-दशहरा में आती है वह बूढ़ी व निर्बल सी हो गई है। हाँ अब उसे चश्मा भी लग गया है घर की दूसरी मंजिल बन गई है। दो हजार रुपये माहवार किराया आ रहा है। माली रिटायर हो गया। एक हजार पेन्शन मिलती है रिटायरमेण्ट का दो-ढाई लाख माली-मालिन दोनों के नाम से मेरे ही बैंक जहाँ मैं नौकरी करती हूँ जमा है। मालिन का बुढ़ापा सुखमय व निश्चिन्त है।

      मुझे रह-रह कर मालिन की जिन्दगी, गीता का ग्रंथ नजर आ रही है बिना पढ़ी लिखी अंगूठा छाप दुबली पतली मालिन ने अपनी मेहनत व लगन से न केवल अपना बल्कि अपने बाल-बच्चों व पति सभी का जीवन सुखद बना दिया था। कहा भी गया है, लगन, परिश्रम और विश्वास से किनारा खुद ब खुद मिलता ही है।

      गुरबत कहाँ टिकेगी मेहनत के सामने,
      भागेगी बिना पाँव ही मेहनत के सामने,
      मेहनत के पसीने सा मोती नहीं जहाँ में,
      हर शख्सियत झुकेगी मेहनत के सामने।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

      READ MORE POETRY BY PRABHA JI CLICK HERE
      READ MORE STORY BY PRABHA JI CLICK HERE

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,747FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles