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      हर साल मानसून में बढ़ जाते हैं फ्लू के मामले और बच्चों एवं बुजुर्गों के अस्पताल में भर्ती होने का बढ़ जाता है खतरा

      चार अलग-अलग प्रकार के वायरस होते हैं जो इन्फ्लूएंजा का कारण बन सकते हैं, जिसे आम बोलचाल में फ्लू कहा जाता है। वैसे तो ये वायरस पूरे साल संक्रमण फैलाते हैं, लेकिन मानसून और सर्दी के मौसम में तापमान में ज्यादा उतार-चढ़ाव के कारण इनका प्रसार तेज हो जाता है। 

      बच्चे इनमें से किसी भी वायरस के कारण फ्लू की चपेट में आ सकते हैं और फिर धीरे-धीरे पूरा परिवार फ्लू की गिरफ्त में आ जाता है। फ्लू वायरस नाक और गले के साथ-साथ कभी-कभी फेफड़ों को भी प्रभावित करते हैं। यह 5 साल से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों के अस्पताल में भर्ती होने और उनकी असमय मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में से है।

      बैक्टीरियल न्यूमोनिया, कान एवं साइनस इंफेक्शन होना तथा पहले से चल रही किसी बीमारी का गंभीर हो जाना फ्लू के कारण होने वाली जटिलताओं में शामिल है।

      बच्चों की विकसित हो रही प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) और बुजुर्गों की कमजोर होती प्रतिरक्षा प्रणाली अक्सर इन जटिलताओं से लड़ने में सक्षम नहीं हो पाती है। फ्लू के चार में किसी भी वायरस के संक्रमण की चपेट में आने के खतरे को कम करने में 4-इन-1 फ्लू वैक्सीनेशन सबसे प्रभावी तरीकों में से है।

      इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) 6 महीने से 5 साल की उम्र के बच्चों और 50 साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को हर साल फ्लू का टीका लगवाने का सुझाव देते हैं, जिससे उन्हें इस तरह की जटिलताओं से बचाया जा सके।

      4-इन-1 फ्लू वैक्सीनेशन के बारे में अनव चाइल्ड केयर के डॉ. अभिषेक चटर्जी ने कहा :

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      ‘बच्चों में फ्लू के कारण होने वाली जटिलताएं गंभीर हो सकती हैं। इनमें सांस लेने में परेशानी, बहुत तेज बुखार और सांस की नली में सूजन जैसी जटिलताएं शामिल हैं। एक साल से कम उम्र के बच्चे अगर फ्लू की चपेट में आ जाएं तो उनमें आगे चलकर अस्थमा या सांस संबंधी अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मैंने सितंबर से नवंबर के दौरान फ्लू के मामलों में अक्सर बहुत तेजी देखी है। उत्तर भारत में इन महीनों को फ्लू का सीजन भी कहा जाता है। सालाना फ्लू का टीका अगर जून से अगस्त के बीच लगवा लिया जाए, तो बच्चों को इस फ्लू सीजन में सुरक्षित रखना संभव हो सकता है। अपने बच्चों को फ्लू के संक्रमण से बचाने के लिए अभिभावकों को अपने डॉक्टर से मेडिकल एडवाइस लेनी चाहिए और सालाना 4-इन-1 फ्लू वैक्सीनेशन के बारे में पता करना चाहिए।’

      फ्लू का वायरस बच्चों से बच्चों में या बड़ों से बच्चों में बहुत तेजी से फैल सकता है। यहां तक कि संक्रमित व्यक्ति में फ्लू के लक्षण दिखने से पहले ही वह दूसरे में संक्रमण फैलने का कारण बन सकता है। फ्लू के कुछ सामान्य लक्षणों में खांसी, बुखार, ठंड लगना, गले में खराश, थकान, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द शामिल हैं।

      फ्लू के वायरस संक्रमित बच्चे या वयस्क के बात करते समय, खांसते या छींकते समय उनकी सांसों से निकलने वाले ड्रॉपलेट्स के माध्यम से फैलते हैं। ये ड्रॉपलेट दरवाजे, स्कूल की डेस्क, किताब या खिलौनों पर भी गिर सकते हैं और जब कोई दूसरा बच्चा उन सतहों को छूता है, तो वह भी संक्रमण की चपेट में आ जाता है।

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      स्कूल और खेल के मैदान सामान्य तौर पर ऐसे स्थान होते हैं, जहां बच्चे और बड़े अन्य लोगों में संक्रमण फैलने का कारण बनते हैं।

      सालाना 4-इन-1 फ्लू टीकाकरण की जरूरत विभिन्न अध्ययनों में सिद्ध हो चुकी है और इसके पर्याप्त कारण हैं। फ्लू वायरस के चारों प्रकार लगातार म्यूटेट होते रहते हैं, अर्थात उनमें बदलाव होता रहता है और हर साल नया स्ट्रेन संक्रमण का कारण बनता है।

      पिछले साल लगे टीके से शरीर में बनी इम्युनिटी नए म्यूटेट हुए स्ट्रेन के संक्रमण से बचाने में पर्याप्त सक्षम नहीं होती है।हर साल विश्लेषण के आधार पर डब्ल्यूएचओ ज्यादा सक्रिय वायरस स्ट्रेन की पहचान करता है और उसी के हिसाब से बचाव के लिए सालाना टीका तैयार किया जाता है।

      सीडीसी सुझाव देता है कि अस्थमा, डायबिटीज, दिल या फेफड़े की बीमारी या किसी अन्य पुरानी बीमारी से जूझ रहे और ऐसे बच्चे जिनके फ्लू के संक्रमण की चपेट में आने का खतरा ज्यादा हो, उन्हें 5 साल की उम्र के बाद भी सालाना फ्लू का टीका लगवाना चाहिए।

      बच्चों में फ्लू का संक्रमण पूरे परिवार में तनाव एवं चिंता का कारण बन सकता है। यहां तक कि सामान्य संक्रमण में भी ठीक होने में 8 से 10 दिन तक का समय लग सकता है। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं और माता-पिता को भी बीमार बच्चे के हिसाब से अपने काम से समझौता करना पड़ता है।

      टीकाकरण के साथ-साथ घर एवं स्कूल पर सफाई का ध्यान रखना भी बहुत आवश्यक होता है। बच्चों को समय-समय पर पानी और साबुन से हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। विभिन्न सतह, खिलौने और अन्य ऐसी वस्तुएं जिन्हें बच्चे अक्सर छूते हैं, उन्हें नियमित रूप से सैनिटाइज करते रहना चाहिए।

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      अगर कोई बच्चा बीमार है, तो उसे घर में ही रहना चाहिए। ऐसे बच्चों को स्कूल या खेलने नहीं भेजना चाहिए। माता-पिता को अपने पीडियाट्रिशयन से बात करके फ्लू, इसकी जटिलताओं और इससे बचाव में सक्षम टीकाकरण के बारे में पर्याप्त जानकारी लेनी चाहिए।

      2YoDoINDIA अस्वीकरण: लेख में उल्लिखित युक्तियाँ और सुझाव केवल सामान्य सूचना उद्देश्यों के लिए हैं और इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी फिटनेस कार्यक्रम शुरू करने या अपने आहार में कोई भी बदलाव करने से पहले हमेशा अपने डॉक्टर या आहार विशेषज्ञ से परामर्श लें।

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