मगध सम्राट बिंन्दुसार ने एक बार अपनी सभा मे पूछा, देश की खाद्य समस्या को सुलझाने के लिए सबसे सस्ती वस्तु क्या है? मंत्री परिषद् तथा अन्य सदस्य सोच में पड़ गये! चावल, गेहूं, ज्वार, बाजरा आदि तो बहुत श्रम के बाद मिलते हैं और वह भी तब, जब प्रकृति का प्रकोप न हो, ऎसी हालत में अन्न तो सस्ता हो ही नहीं सकता!
तब शिकार का शौक पालने वाले एक सामंत ने कहा, राजन सबसे सस्ता खाद्य पदार्थ मांस है, इसे पाने मे मेहनत कम लगती है और पौष्टिक वस्तु खाने को मिल जाती है।
सभी ने इस बात का समर्थन किया, लेकिन प्रधान मंत्री चाणक्य चुप थे।
तब सम्राट ने उनसे पूछा, आपका इस बारे में क्या मत है?
चाणक्य ने कहा, मैं अपने विचार कल आपके समक्ष रखूंगा!
रात होने पर प्रधानमंत्री उस सामंत के महल पहुंचे, सामन्त ने द्वार खोला, इतनी रात गये प्रधानमंत्री को देखकर घबरा गया। प्रधानमंत्री ने कहा, शाम को महाराज एकाएक बीमार हो गये हैं, राजवैद्य ने कहा है कि किसी बड़े आदमी के हृदय का दो तोला मांस मिल जाए तो राजा के प्राण बच सकते हैं, इसलिए मैं आपके पास आपके हृदय का सिर्फ दो तोला मांस लेने आया हूं। इसके लिए आप एक लाख स्वर्ण मुद्रायें ले लें।
यह सुनते ही सामंत के चेहरे का रंग उड़ गया, उसने प्रधानमंत्री के पैर पकड़ कर माफी मांगी और उल्टे एक लाख स्वर्ण मुद्रायें देकर कहा कि इस धन से वह किसी और सामन्त के हृदय का मांस खरीद लें। प्रधानमंत्री बारी-बारी सभी सामंतों, सेनाधिकारियों के यहां पहुंचे और सभी से उनके हृदय का दो तोला मांस मांगा, लेकिन कोई भी राजी न हुआ, उल्टे सभी ने अपने बचाव के लिये प्रधानमंत्री को एक लाख, दो लाख, पांच लाख तक स्वर्ण मुद्रायें दीं।
इस प्रकार करीब दो करोड़ स्वर्ण मुद्राओं का संग्रह कर प्रधानमंत्री सवेरा होने से पहले वापस अपने महल पहुंचे और समय पर राजसभा में प्रधानमंत्री ने राजा के समक्ष दो करोड़ स्वर्ण मुद्रायें रख दीं।
सम्राट ने पूछा, यह सब क्या है?
तब प्रधानमंत्री ने बताया कि दो तोला मांस खरिदने के लिए इतनी धनराशि इकट्ठी हो गई फिर भी दो तोला मांस नही मिला।
राजन! अब आप स्वयं विचार करें कि मांस कितना सस्ता है?
जीवन अमूल्य है, हम यह न भूलें कि जिस तरह हमें अपनी जान प्यारी है, उसी तरह सभी जीवों को भी अपनी जान उतनी ही प्यारी है। लेकिन वो अपनी जान बचाने मे असमर्थ है और मनुष्य अपने प्राण बचाने हेतु हर सम्भव प्रयास कर सकता है, बोलकर, रिझाकर, डराकर, रिश्वत देकर आदि आदि।
पशु न तो बोल सकते हैं, न ही अपनी व्यथा बता सकते हैं।
तो क्या बस इसी कारण उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाय।
शुद्ध आहार, शाकाहार !
मानव आहार, शाकाहार !