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      || पर्वत और मधुवन ||

      पर्वत और मधुवन

      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन,
      इत जाऊँ या उत जाऊँ है अति दुविधा में मेरा मन ।

      कभी मुझे लगता पर्वत की पगडंडी चलता जाऊँ,
      बादल से अठखेली कर लूँ कभी हवा में मंडराऊँ ।
      कहीं-कहीं झरने पर्वत के झर-झर झरते ज्यूं जीवन,
      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन ।

      मन विचलित होकर कहता है, चल उपवन की ओर चलें,
      पंछी की आवाज मधुर,सूखे पत्तों के गीत भले ।
      ठंडी हवा को सुरभित करता रहता है वन में चंदन,
      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन ।

      पर्वत चढ़ने में थोड़ा सा सहना होगा कष्ट मुझे,
      पर करने मिल सकती है, बादल से बातें स्पष्ट मुझे ।
      सूर्योदय, सूर्यास्त विशिष्ट दृश्य व मन्दिर के दर्शन,
      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन ।

      वन में हिरण, शेर,चीता व बाहरसिंगों वाला क्षेत्र,
      एक से एक पशु पक्षी जिन्हें देखूं कर विस्फारित नेत्र ।
      स्वच्छ नदी के जल में कर लूँ स्नान सहित पूजा अर्चन,
      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन ।

      अच्छा हो मैं वन और पर्वत दोनों का रसपान करूँ,
      पहले वन विचरण कर लूं फिर पर्वतराज की ओर बढूं ।
      तभी मिले मेरे मन को आनंदम पूरन का पूरन,
      पर्वत कभी आकर्षित करता,कभी लुभाता है मधुवन ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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