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      || सम्बंध परस्पर प्यार का ||

      शादी और ब्याह है सम्बंध परस्पर प्यार का,
      बन जाता है आने वाला नया अंग परिवार का ।

      समधी और समधिन समधौरा प्रेम पताका की झंडी,
      साला-साली,ननद और देवर हर रिश्ता है सार का ।

      दो परिवारों के सदस्य आपस में घुल मिल जाते हैं,
      सामाजित उत्थान तभी सम्भव होता संसार का ।

      खुले हृदय से इन सम्बन्धों को जो सभी निभा लें तो,
      लौह स्तम्भ स्वयमेव खड़ा हो जाता है आधार का ।

      अगर जरा सी बात को लेकर गाँठ पड़े अंतर्मन में,
      यही विघ्न कारण बन जाती आपस में तकरार का ।

      रिश्तों को बाँधे जो धागा रेशम से नाजुक होता,
      जरा ढील या तान बना देती कारण दीवार का ।

      घी के बदले अगर आग में बस पानी डाला जाये,
      आँच ताप सब पानी बनकर बह जाता अंगार का ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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