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माँ में तेरी सोनचिरैया | WRITTEN BY MRS PRABHA PANDEY 2YODOINDIA POETRY

|| सम्बंध परस्पर प्यार का ||

शादी और ब्याह है सम्बंध परस्पर प्यार का,
बन जाता है आने वाला नया अंग परिवार का ।

समधी और समधिन समधौरा प्रेम पताका की झंडी,
साला-साली,ननद और देवर हर रिश्ता है सार का ।

दो परिवारों के सदस्य आपस में घुल मिल जाते हैं,
सामाजित उत्थान तभी सम्भव होता संसार का ।

खुले हृदय से इन सम्बन्धों को जो सभी निभा लें तो,
लौह स्तम्भ स्वयमेव खड़ा हो जाता है आधार का ।

अगर जरा सी बात को लेकर गाँठ पड़े अंतर्मन में,
यही विघ्न कारण बन जाती आपस में तकरार का ।

रिश्तों को बाँधे जो धागा रेशम से नाजुक होता,
जरा ढील या तान बना देती कारण दीवार का ।

घी के बदले अगर आग में बस पानी डाला जाये,
आँच ताप सब पानी बनकर बह जाता अंगार का ।

लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “

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