आओ दीप जलायें
क्रोध, ईर्ष्या, अहम्, स्वार्थ का, दिल से तिमिर हटायें।
ज्ञानमयी निज मनमन्दिर हित, आओ दीप जलायें।।
प्रेम, समर्पण, त्याग कर्म की, फिर शुरुवात करें।
मानवता हित हर मानव से, हिल-मिल प्यार करें।।
दुखी, गरीब, अनाथों से मिल , उनकें दर्द मिटायें।
ज्ञानमयी निज मनमन्दिर हित, आओ दीप जलायें।।
जिनके ख्वाब अधूरे हो, आशा के दीपक बुझा दिये।
उनके अश्रु नयन के पोछें, प्रेम सहित सब गले मिलें।।
सपने कर साकार सभी के, बुझते चेहरे चमकायें।
ज्ञानमयी निज मनमन्दिर हित, आओ दीप जलायें।।
हर जीवों पर दयादृष्टि कर, कभी न दुख पहुंचे।
पाप करें हर त्याग सदा ही, सत्य डगर चलके।।
“राही” कर्मों की ज्योती से, जगमग जग कर जायें।
ज्ञानमयी निज मनमन्दिर हित, आओ दीप जलायें।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”