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      || जीव का मरण ||

      जीव का मरण

      धरती,बादल, नदियाँ, पर्वत हवा और गगन,
      इन सबसे मिल के बना है अपना पर्यावरण ।

      कर्तव्य है हमारा अशुद्ध ना करें इन्हें,
      ये ऐसी धुरी जिस पर आश्रित सभी जीवन ।

      खनिज सम्पदायें हमें देते हैं भूमि,पर्वत,
      जड़ी-बूटी, लकड़ी और फल-फूल देते हैं वन ।

      है प्राण वायु अपनी हरियाली पर ही आश्रित,
      इससे ही है सुशोभित अपना खिला हुआ चमन ।

      सागर नदी झरनों में जल है बहुत उपयोगी,
      कल कारखाने इनमें न मिलने दें रसायन ।

      आकाश की कक्षा पे बैठे हैं देश विकसित,
      तोड़ें न परत ओजोन बिगाड़ें ना वातावरण ।

      मनमानी हम करेंगे यदि अपनी प्रकृति से,
      क्षति इसमें मानवता की,और जीव का मरण ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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