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      || मोबाइल का रिस्तों पर प्रभाव ||

      मोबाइल का रिस्तों पर प्रभाव

      मोबाइल से जो जन रिस्ता जोड़ चुका है।
      सच मानो खुद से ही वो मुँह मोड़ चुका है।।
      दैनिक क्रिया अनबुझी सारा ध्यान रहे मोबाइल पे
      घर वालों सम्बन्धी से वो सारे रिस्ते तोड़ चुका है।।

      अगर बैटरी खतम हुई तो प्राण चले जाते है।
      मोबाइल गर हुआ बंद सब ज्ञान चले जाते है।।
      नवप्रभात होते ही सब जन मोबाइल को ही खोजे
      असल छोड़ आभासी जग मे ध्यान चले जाते।।

      माना मोबाइल मे सबको सारा जग दिखता है।
      जैसी मन की मांग वही फौरन आकर मिलता है।।
      करो वीडियो काल दूरियों की दूरी कम करके
      पर हद से ज्यादा उपयोगी जीवन जन का डसता है।।

      खर्चे बढ़ते और दिमागी उलझन को फैलाता है।
      मोबाइल मे झूठ बोलना आदीपन आ जाता है।।
      नजरों का नजराना भी सारी बंदिश को तोड़े
      अपराधों को जोड-तोड मन मस्तिष्क को दे जाता है।।

      युगों युगों से देख रहे हम अति से ज्यादा जो होता है।
      उसमे फँसकर इस समाज का हर जन का जीवन रोता है।।
      जितनी रहे जरूरत उतना ही गर उपयोग करें
      पाना होता सुनो बहुत गर कुछतो फिर खोना होता है।।

      लेखक
      राकेश तिवारी
      “राही”

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