More
    35.1 C
    Delhi
    Friday, April 26, 2024
    More

      || अपने हाथ सभ्यता ||

      अपने हाथ सभ्यता और संस्कृति मिटा रही,
      युवा पीढ़ी आज की यूँ गर्त में जा रही ।

      बात करें चीर की तो चीर अब बचा कहाँ,
      आँख में शर्मो-हया का नीर अब बचा कहाँ ।
      सीने और जाँघ पर लकीर सी दिखा रही,
      अपने हाथ सभ्यता और संस्कृति मिटा रही ।

      फूल और फूल का मिलन संकेत होता है,
      चोंच का मलाप प्रेम रंग में भिगोता था ।
      फिल्में बेधड़क ही शैय्या दृश्य दिखला रहीं,
      अपने हाथ सभ्यता और संस्कृति मिटा रही ।

      जन्म दिवस पार्टियों का लालच देर रात तक,
      नशा और नृत्य कहीं कहीं हो प्रभात तक ।
      सुबह भी न पूछते बेटी कहाँ से आ रही,
      अपने हाथ सभ्यता और संस्कृति मिटा रही ।

      नमस्कार की जगह चुंबन हुआ है आम अब,
      नग्नता ने आचरण की कर ही दी है शाम अब ।
      सभ्यता का यूँ मखौल नग्नता उड़ा रही,
      अपने हाथ सभ्यता और संस्कृति मिटा रही ।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

      READ MORE POETRY BY PRABHA JI CLICK HERE

      DOWNLOAD OUR APP CLICK HERE

      ALSO READ  || जख्मी बचपन ||

      Related Articles

      LEAVE A REPLY

      Please enter your comment!
      Please enter your name here

      Stay Connected

      18,747FansLike
      80FollowersFollow
      720SubscribersSubscribe
      - Advertisement -

      Latest Articles