अश्रु का सागर (स्त्री)
अश्रु का सागर भर नहीं प्रीत की मुस्कान हूँ,
प्यार की सरिता हूँ गहरी स्नेह का उद्यान हूँ ।
उड़ती अंबर में मैं उजले पंख वाली हंसिनी,
दूध पानी अलग करे हंस की मैं जान हूँ
खुशियों का इजहार करती कोयलों की कूक हूँ,
व्यथा की बातें करें तो वेदना की तान हूँ ।
छुई मुई से भी अधिक लज्जा अंग अंग है,
आये आँच अस्मिता पर अग्नि का आव्हान हूँ ।
कोमलांगी हूँ मैं इतनी ओस से सुकोमल हूँ,
बात आये मान की तो बज्र हूँ पाषाण हूँ ।
फूल के सादृश्य खुशबू हर पवित्र भाव में,
माँ, बहन,बेटी के मैं हर रूप की पहचान हूँ
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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