बचपन बिगड़ गया
जिस देश का, जिस राष्ट्र का बचपन बिगड़ गया,
समझो वहाँ का बागवाँ, गुलशन बिगड़ गया।
उस खेत की खेती का भगवान ही मालिक,
बारिश का चतुर्मास और सावन बिगड़ गया।
पढ़ने की उम्र में जहाँ मजदूर बन रहे,
पक्का है ऐसे देश का दरशन बिगड़ गया।
हर वक्त टी.वी. में रहें अश्लील देखते,
संस्कृति की दहलीज पर दामन बिगड़ गया।
माता-पिता के सामने अशिष्ट हो व्यवहार,
शर्मो-हया के शीशे का दरपन बिगड़ गया।
खुशहाली, उन्नति की मशीन जाम हो गई,
कल पुर्जे जंग खा गये ऐन्जिन बिगड़ गया।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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