|| बेटी को ऐसे रखें | BETI KO AISE RAKHE ||
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माँ में तेरी सोनचिरैया
बेटी को ऐसे रखें
बेटी को ऐसे रखें पछताना न पड़े,
शर्म से कभी नजर झुकाना न पड़े।
प्यार दें भरपूर उसे बेटे के समान,
सभ्य सलीका सिखायें, हो गुणों की खान ।
सुगंध युक्त फूल को महकाना ना पड़े,
बेटी को ऐसे रखें, पछताना न पड़े।
प्यार से उसे समझाये हर इक भूल पर,
बेवजह भी टांग कर न रखें शूल पर ।
बिन बुलाये आये वो बुलाना ना पड़े,
बेटी को रोके रखें, पछताना न पड़े।
उसकी शिक्षा में कमी रहने नहीं पाये,
आपको पता रहे वो जब जहाँ जाये ।
प्रातः काल स्वंय उठे,उठाना न पड़े,
बेटी को ऐसे रखें, पछताना न पड़े।
चोली जैसे छोटे झीने वस्त्र न पहने,
लाज शर्म होते हैं हर बेटी के गहने।
क्लब से दूर रहने को बताना ना पड़े,
बेटी को ऐसे रखें, पछताना ना पड़े ।
बेटी जब भी आपकी हो जाये सयानी,
ध्यान रखें हो न जाये उससे नादानी ।
संस्कृति, परम्परा उसे समझाना ना पड़े,
बेटी को ऐसे रखें, पछताना न पड़े।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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