दे के जन्म मुझपे बड़ा उपकार किया है,
भैया को टाफी मुझे मात्र गुड़ ही दिया है ।
भैया को लेकर दिये बाल और कंचे,
पर हमारे लिये तो पत्थर भी न जँचे ।
तिसपे भी सब बूढ़ों का विरोध लिया है,
दे के जन्म मुझपे बड़ा उपकार किया है ।
दीवाली पर भैया को वस्त्र और जूते,
मेरे पुराने चले इस्त्री के बलबूते।
फिर भी मुझे देख जहर जैसे पिया है,
दे के जन्म मुझपे बड़ा उपकार किया है ।
जन्म दिन भैया का कटा केक,दी दावत,
मेरा जन्म दिन तो जैसे रात अमावस ।
आँसू के धागे से होठ मैंने सिया है,
दे के जन्म मुझपे बड़ा उपकार किया है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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