घनघोर काली रातों के साये
घनघोर काली रातों के साये,
माझी को संगीत लहरों का भाये ।
सागर सघन तट न आता नजर है,
माझी है मतवाला लंबा सफर है,
पानी की छप-छप में जीवन का राग,
माझी का पतवार से है अनुराग ।
माझी की धड़कन में घुले समाये,
माझी को संगीत लहरों का भाये ।
चलता ही चल माझी चलता ही चल,
तेरे इरादों में उफनाये बल,
बिजली गिरे या भिगाये बौछार,
हर हाल करना है सागर को पार ।
हिम्मत तेरी तुझे राह दिखाये,
माझी को संगीत लहरों का भाये ।
कहीं दूर अब दिख रहा है चिराग,
सीने में भर हौसलों की तू आग,
पवन की छुअन से नसों में उन्माद,
अपने लहू से स्वयं कर संवाद ।
बाहें फैलाये वो मंजिल बुलाये,
माझी को संगीत लहरों का भाये ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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