जय श्री राम
त्रेतायुग में वर्षों का ही वनवास मिला रघुनंदन को।
कलयुग में तरसी सदियों तक नगर अयोध्या वंदन को।।
चौदह वर्ष बाद थे लौटे जब दशरथ के रामलला।
घर-घर दीप जले खुशियों के मुरझाया था चमन खिला।।
पांच सदी के बाद अयोध्या फिर से सजने वाली है।
अपने रामलला की भक्तों सिंहासन की बारी है।।
चाहे जन-गण सिंहासन पे बैठायें दुख भंजन को।
कलयुग में तरसी सदियों तक नगर अयोध्या वंदन को।।
आओ सब मिल अखिल लोक के नायक का अभिषेक करें।
धर्म सनातन पतन हो रहा मिलकर उसे सचेत करें।।
मंगल गान करें सब घर-घर शंख और घड़ियाल बजें।
थाल सजाकर करें आरती पूजन-अर्चन ज्योति जलें।।
कार सेवकों को श्रद्धांजलि अर्पित उनके क्रंदन को।
कलयुग में तरसी सदियों तक नगर अयोध्या वंदन को।।
कौशिल्या सुत राम रमापति विष्णु अंश के अवतारी।
मातु जानकी और भ्रांत संग लागे छवि सबको प्यारी।।
दीप जलें घर-आंगन फिर से सारा जग रोशन हो जाये।
श्री राम के जयकारों से धरा और नभ तक थर्राये।।
“राही” धूल प्रभू के पग की मस्तक मलें समझ चंदन को।
कलयुग में तरसी सदियों तक नगर अयोध्या वंदन को।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
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