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      || कहाँ चाहती है सरकार ||

      कहाँ चाहती है सरकार

      बाढ़ और सूखा हो समाप्त ये कहाँ चाहती है सरकार,
      इनके दम पर ही निर्भर है कालाधन, इनका व्यापार।

      मरे हजारों, फिर भी नेता जरा नहीं गंभीर हुये,
      बैंक का बैलेंस बढ़ता जाये, क्या करना सुन हाहाकार।

      तोंद पर इनकी असर नहीं, लाख हो भूखे सभी किसान,
      अपनी तोंद में फिर भी ये भरना चाहें सारा संसार।

      आये सुनामी या फिर डूबे बाढ़ में चाहे जितने भी,
      लाख मिले ना रोटी, कपड़ा भले डूब जाये घर बार।

      ज्यों-ज्यों बढ़े तबाही त्यों-त्यों मोटी हो जाती चमड़ी,
      जितनी अधिक आपदा होगी उतना गर्म लूट बाजार।

      घी के दीप जलाकर नेता यही प्रार्थना हैं करते,
      सूखा, बाढ़, बढ़े फले, फूले सदा निरन्तर बारंबार।

      लेखिका
      श्रीमती प्रभा पांडेय जी
      ” पुरनम “

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