लकड़ी
हरे-भरे कुछ वृक्ष लगायें
ये हैं अपने हाथ में,
हरयाली भी मूल में पायें
फल भी पायें साथ में ।
ग्रीष्म में ठंडी छाया पायें,
झूला डालें बरसात में,
भीनी भीनी खुशबू के संग
प्राणवाणु सौगात में ।
वृक्षों पर पंछी की सरगम,
मधुर लगे प्रभात में,
अपनी थकन उतारे प्राणी,
रस्ते आवत जात में ।
खिड़की दरवाजों की लकड़ी,
छाल, नोंद खैरात में,
वृक्ष लगाकर पुण्य कमायें
कहावत है हर जात में ।
जन्म समय झूला लकड़ी का,
लकड़ी बात-बात में,
अंत समय अर्थी में लकड़ी
लकड़ी चिता के साथ में ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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