माँ की कृपा
शारदे माँ की कृपा का, गर नही वरदान होता।
गीत, गजलों का भला, मुझको कहां फिर ज्ञान होता।।
शब्द भावों को समझने की न आ पाती अकल,
आप लोगों से बना फिर, मै सदा अनजान होता।।
कुण्डली, दोहा, सवैया, मै समझ पाता नही।
और मुक्तक को कलम से, मै तो लिख पाता नही।।
हर विधा की मात्रायें गर नही मइया सिखाती,
तो लकीरें हाथ की, मै तो बदल पाता नही।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
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