माँ की महिमा
जगह-जगह पे सज रहा, माता का दरबार ।
भक्ती में डूबे सभी, गूजें जय-जयकार ।।
लाल चुनरिया ओढ़के, नीमसार की मात ।
निज भक्तों पे रख रही, अभयदान का हाथ ।।
मातु वैष्णो की करें, सेवक जय-जयगान ।
करें पहाड़ा वालिये, सबका ही कल्याण ।।
विंदवासिनी मातु की, लीला अपरम्पार ।
मुँहमांगा वर पा रहें, जो पहुंचे दरबार ।।
काली माँ बंगाल की, छाई कीर्ति महान ।
दया सभी पे कर रही, मझ्या दया निधान ।।
मैहर वाली शारदे, दर्शन दे अनमोल ।
गया शरण जो मातु के, किस्मत देती खोल ।।
ज्वाला देवी की कृपा, पाने हित सब जाय ।
धूप, दीप, नौवेद से, माँ को रहे मनाय ।।
हींगलाज की मातु का अमर बना वरदान ।
यश, गाथा व कीर्ति है, माँ की बडी महान ।।
मातु पितांबरा पूजते, माला, फूल चढाय ।
बल, बुद्धि विद्या दे रही, जो दर सेवक जाय ।।
वाणी माँ को पूजते, रखि श्रृद्धा मन माय ।
सृजन करें अमरत्व सा, कवि लेखनी चलाय ।।
विष्णु प्रिया को प्रेम से, जो जन करता ध्यान ।
माँ लक्ष्मी की कृपा से, बन जाता धनवान ।।
गौरी माँ शिव संग मे, दया रही दिखलाय ।
झोली खाली भर रही, मंद-मंद मुस्काय ।।
लेखक
राकेश तिवारी
“राही”
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