ऊँट
ऊँट को कहते हैं सब जहाज रेगिस्तान का,
काम आता है कभी ये ऊँट भी मचान का।
बिना जल रह सकता है ऊँट कई दिवस तक,
तिस पे भी बोझा ढोये इसमें भी नहीं शक,
झाड़ियों से काम चला लेता खान पान का,
ऊँट को कहते हैं सब जहाज रेगिस्तान का।
गर्म तपती रेत का भी ताप वो सहता,
सूर्य भी तन को जलाये कुछ नहीं कहता,
ऊँट का भी होता दिल-जिगर महान का,
ऊँट को कहते है सब जहाज रेगिस्तान का।
क्या होता रेगिस्तान में जो ऊँट ना होता,
कौन भीषण आग सहके लोगों को ढोता,
ऊँट के लिए रेगिस्तान, ऋणी भगवान का,
ऊँट को कहते हैं सब जहाज रेगिस्तान का।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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