ये धरती अपनी माता है
ये धरती अपनी माता है, हम सबकी भाग्य विधाता है,
कण-कण में माँ की ममता है तृण-तृण से माँ का नाता है ।
गेहूं मिलता चांवल मिलता,मिलता मां से हर अन्न हमें,
दालें, सब्जी,फल-फूल सभी,देकर करती संपन्न हमें,
जो जितना मां से प्यार करे उतना वो धनी कहाता है,
ये धरती अपनी माता है, हम सबकी भाग्य विधाता है ।
लोहा जस्ता,सोना,चांदी हर धातु गर्भ समाये हैं,
हीरे,नीलम, मूंगे,माणिक धरती से जग ने पाये हैं,
अनगिनत धातुऐं और माणिक धरती से मानव पाता है,
ये धरती अपनी माता है, हम सबकी भाग्य विधाता है ।
छोटे-बड़े,धनी,दरिद्र में करती कभी ना अंतर है,
मां दया प्रेम हर मानव पर छलकाती सदा निरंतर है,
इसके आंचल की छाया में हर दुखी प्यार पा जाता है,
ये धरती अपनी माता है, हम सबकी भाग्य विधाता है ।
लेखिका
श्रीमती प्रभा पांडेय जी
” पुरनम “
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